करनाल. नि:संदेह माता धरती है तो पिता आकाश के समतुल्य होता है। यही आकाश कल्पना चावला को बुलंदियों के आकाश में ले गया।
भले ही पिता के अश्रु आज उसकी यादों में बरसते हैं, लेकिन पंजाब
इंजीनियरिंग कालेज चंडीगढ़ के प्रांगण में बहे पिता के वो आंसू कल्पना के
लिए अमृत बनकर बरसे। ममता के उन आंसुओ ने ही जैसे कल्पना की किस्मत लिखी और
कल्पना उन अश्रुओं रूपी अमृत से इस जहां और उस जहां दोनों में अमर हो गई।
कल्पना चावला की 10वीं पुण्य तिथि पर महान अंतरिक्ष यात्री डा. कल्पना चावला के पिता बनारसी लाल चावला दैनिक भास्कर से मुखातिब हुए।
इस दौरान वे कल्पना चावला के संस्करणों में खो गए। लक्ष्य के प्रति कल्पना
की दृढ़ता और हौंसले का जिक्र करते हुए श्री चावला ने यूनिवर्सिटी ऑफ
टेक्सास आर्लिंगटन अमेरिका में उनके एडमिशन का रोचक वाकया बताया। वर्ष 1982
में कल्पना चावला ने पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग
में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली थी।
इसके बाद कल्पना चावला को अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास आर्लिंगटन
से आगामी पढ़ाई की ऑफर मिल चुकी थी। इसी दौरान जुलाई में उनके पिता बिजनेश
पर्पज से अमेरिका जा रहे थे तो कल्पना ने पूछा कि पिता जी कब आओगे तो पिता
ने कहा था कि ठीक एक माह बाद।
लेकिन जब पिता निर्धारित अवधि में नहीं आए तो उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी
में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। उनके पिता बीएल चावला 27 अगस्त 1982 को घर
पहुंचे तो उन्हें पता चला कि कल्पना घर पर नहीं है। इस पर वे परेशान हुए
और अगली सुबह कल्पना को लेने के लिए चंडीगढ़ पहुंच गए।
पिता से मिलते हुए कल्पना उनके गले से लिपट गई। तभी वह तुरंत हवा की
स्पीड से कमरों की तरफ गई और आई तथा कुछ कागज पिता को दिखाते हुए रो पड़ी।
कहने लगी पापा आपने मेरा कैरियर जो खराब करना था वो कर दिया
लेकिन अब वह अपने खर्च से अगले साल पढ़ाई के लिए अमेरिका जाएगी।
उनकी यह बातें सुनते ही पिता की आखों से अश्रु बहने लगे और उनके मुख
से यही निकला कि अगले साल नहीं मेरी बेटी इसी साल अमेरिका पढऩे को जाएगी।
इस पर कल्पना बोली पिता जी 31 अगस्त एडमिशन की लास्ट डेट है और आज 28 है।
पिता ने कहा कि तूं सिर्फ इतना बता क्या इस साल जाना है, इस पर कल्पना ने
कहा हां मुझे जाना है।
पिता बनारसी लाल चावला को पता चला तो उन्होंने अमेरिका में अपने एक दोस्त
को फोन किया और स्थिति बताते हुए एडमिशन के लिए कल्पना के आने की सूचना
यूनिवर्सिटी तक पहुंचाने को कहा । कल्पना अगले दिन अमेरिका पहुंची तो
यूनिवर्सिटी के दो स्टूडेंट उन्हें रिसीव करने के लिए पहले से ही खड़े थे।
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